प्रिय गुरुदेव इंदौर में आयोजित होने वाले आगामी हिंदी सम्मेलन में अपने भाषण के लिए मैं निम्नलिखित प्रश्नों पर बुद्धिजीवियों के विचार इकट्ठा कर रहा हूँ।
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मंथन: भूमिका
“मंथन” मोहनदास गाँधी (महात्मा) व रबिंद्रनाथ ठाकुर (गुरुदेव) के मध्य हुए पत्राचार एवं उनके द्वारा लिखे गए कुछ निबंधों का हिंदी अनुवाद है।
तुम मुझको कब तक रोकोगे
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं, दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं । सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे, अपनी हद रोशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे ।।
तू चल
तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है ।
ईर बीर फ़त्ते
इक रहें ईर, एक रहेंन बीर, एक रहें फत्ते, एक रहें हम
तेनालीरमन्: बाग़ की सिंचाई
इस कहानी में आप पढ़ेंगे कि किस तरह चतुरों के चतुर तेनालीरमन् ने अपनी चतुराई से बिना एक पैसा खर्च किये अपने बाग़ की सिंचाई करा ली।